बैतूल। मनुष्य संसार में जन्म लेता है तो वह बहुत कुछ जानता है, लेकिन ईश्वर की तलाश में वह भटकता रहता है। जबकि ईश्वर तो मनुष्य के भीतर ही वास करता है, केवल आत्मचिंतन और विश्वास से उसे महसूस किया जा सकता है।
उक्त उद्गार विनोबा वार्ड में श्री शिव महापुराण कथा के छठवें दिन 1 मई को सुश्री जया देवी ने मानव जीवन के गूढ़ सत्य को उजागर करते हुए व्यक्त किए। कथा के दौरान हिमाचल नरेश और उनकी पुत्री की कथा सुनाते हुए जया देवी ने कहा कि जब पिता अपनी बेटी को विदा करता है तो वह क्षण सबसे भावुक होता है। उस समय पिता का सारा ज्ञान भी बेटी के विदा होने के दुःख में दब जाता है। बेटी का स्थान संसार में कोई नहीं ले सकता, और यह लोकरीति है कि बेटी को अपने माता-पिता से एक दिन दूर होना ही पड़ता है।
उन्होंने जीवन में पति-पत्नी के संबंधों को लेकर भी गहन विचार रखे। उन्होंने कहा कि पत्नी को सोलह श्रृंगार किए बिना अपने पति के पास नहीं जाना चाहिए। यह पतिव्रता धर्म का एक हिस्सा है। घर आए अतिथि का सम्मान करना चाहिए, झाड़ू जैसी वस्तुओं पर नहीं बैठना चाहिए, और पति के मित्रों एवं रिश्तेदारों का सदा आदर करना चाहिए।
जया देवी ने कहा कि पत्नी को कभी यह नहीं कहना चाहिए कि यह चीज घर में नहीं है। उसे अपने पति द्वारा लाए गए धन की रक्षा करनी चाहिए और अनावश्यक खर्च से बचना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि पत्नी को देर तक दरवाजे पर खड़े होकर प्रतीक्षा नहीं करनी चाहिए क्योंकि इससे नकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
कथा के समापन में उन्होंने कहा कि पति और पत्नी दोनों को एक-दूसरे का सम्मान करना चाहिए। पति का कर्तव्य है कि वह अपनी पत्नी को कभी अकेला न छोड़े और जीवन में सबसे मधुर वाणी का प्रयोग करे।
कथा में स्थानीय बड़ी संख्या में श्रद्धालु उपस्थित रहे और उन्होंने कथा का श्रवण कर जीवन मूल्यों की गहरी समझ प्राप्त की। आयोजन को सफल बनाने में विनोबा शिव शक्ति ग्रुप, युवा संगठन और वार्ड के गणमान्य नागरिकों का सक्रिय सहयोग रहा। सुश्री जया देवी की भावपूर्ण वाणी और गूढ़ व्याख्या से कथा स्थल पर शांति और श्रद्धा का वातावरण बना हुआ है।